Friday, February 15, 2019

बाल कविता - 🇮🇳तिरंगा मेरी शान है 🇮🇳

बाल कविता
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🇮🇳तिरंगा मेरी शान है 🇮🇳
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सदा ऊँचा रखूँगा माँ का भाल
लहराता तिरंगा मेरी शान है ।

हूँ नन्हा लाल भारत माता का
मुझमें बसी देशभक्ति महान है।

निज धरा के लिए होऊं कुर्बान
जन्मभूमि भारत मेरी जान है ।

दुश्मनों के कर सके दाँत खट्टे
सेना में हर इक वीर जवान है।

मैं भी वह बहादुर वीर बनूंगा
तिरंगा जिसका मान-सम्मान है।

मातृभूमि का कर्ज़ तन-मन-जीवन
'अर्पण' देशभक्त की पहचान है।

दुनिया में भारत की हो जयकार
हर भारतवासी का यह गान है ।
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डॉ. अनिता जैन "विपुला"

Thursday, February 14, 2019

बाल कहानी - निक्कू का मिशन

निक्कू का मिशन
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हमेशा मस्ती करने वाला निक्कू पिछले कुछ दिनों से उदास, अकेला बैठा रहता था ,दोस्तों के साथ खेलता भी नहीं था। यह सब रोजाना शाम को पार्क में योग करने वाले कॉलोनी वाले दद्दू ने नोटिस किया। आज उन्होंने निक्कू को अपने पास बुलाकर पूछ ही लिया - " हेलो निक्कू बेटा, क्या हुआ आजकल तुम खेलते नहीं हो, उदास क्यों बैठे रहते हो ?"
निक्कू ने अपने भाव छुपाते हुए से कहा "कुछ नहीं दद्दू बस ऐसे ही"
दद्दू ने कहा "कुछ तो दिक्कत है बेटा, बताओ हम मिलकर कुछ समाधान निकालेंगे।"
दद्दू बहुत स्नेही थे। कॉलोनी में वे सभी से मित्रवत रहते थे । बड़े और बच्चे सभी उनको प्यार करते थे । सभी उनके अनुशासित आचरण के भी कायल थे।
निक्कू को भी लगा जरूर दद्दू उसकी कोई मदद कर देंगे ।
रुआंसे होते हुए उसने अपने दिल की बात बतानी शुरू कर दी- "मेरे मम्मी-पापा के रोज-रोज के झगड़ों से मैं परेशान हो गया हूँ। बात-बात पर झगड़ पड़ते हैं। आजकल मुझे लेकर कुछ ज्यादा ही झगड़ा चल रहा है।"
दद्दू "वो क्यों भला?"
निक्कू - " दद्दू पापा मुझे बोर्डिंग भेजना चाहते हैं। वो कहते हैं मैं वहाँ जाकर सुधर जाऊँगा और मम्मी नहीं भेजना चाहती है तो दोनों बहुत झगड़ते हैं और मुझे भी बहुत डाँट खानी पड़ती है।मुझसे  कोई प्यार नहीं करता।" रोने जैसा मुँह हो गया निक्कू का!
दद्दू ने कहा "बस इतनी सी बात "
निक्कू को मन ही मन आश्चर्य हुआ यह कोई इतनी सी बात है!!
निक्कू "दद्दू अब आप ही बताइए मैं क्या करूँ , कहाँ जाऊँ?"
दद्दू ने उसे समझाते हुए कहा "बेटा यह बात समझो वो आपको प्यार करते हैं इसीलिये आपकी भलाई चाहते हैं ,आपको अच्छा बनाना चाहते हैं।"
निक्कू "वो कैसे?"
दद्दू बोले-"अच्छा बताओ तुम सबसे ज्यादा किसको प्यार करते हो?"
निक्कू ने कहा -"मम्मी को "
दद्दू - "तो क्या तुम चाहोगे तुम्हारी मम्मी का कुछ भी बुरा हो जैसे वो बीमार पड़ जाये या वो तुम्हें छोड़कर चली जाये?"
निक्कू तपाक से बोला "नहीं$$ , कभी नहीं मैं उनके बिना नहीं रह सकता।"
दद्दू को सही मौका लगा अपनी बात समझाने का वे बोले -- " बेटा, जिससे हम प्रेम करते हैं उनको हम हानि नही पहुंचा सकते, हमेशा उनके भले के लिए ही सोचते हैं और उनके लिए कुछ भी कर सकते हैं, है ना?"
निक्कू ने कहा-"हाँ सही कहा आपने"
दद्दू-" तो फिर तुम भी कुछ करो अपने मम्मी के लिए"
निक्कू- " पर क्या करूँ कि पापा मम्मी मुझे प्यार करें?"
दद्दू - " वो प्यार करते हैं इसीलिए आपको अच्छा बनाना चाहते हैं। बस तुम वो जैसा चाहते हैं वैसा करो !"
निक्कू "कैसे?"
दद्दू -"हर काम अपने नियत समय पर करो, समय पर उठो, समय पर होम वर्क करो, समय पर खेलो सबसे बड़ी बात प्रेम से हँसकर बात करो आदि आदि। इससे तुम्हारी दिनचर्या निश्चित रहेगी और तुम्हारे पापा-मम्मी की शिकायत भी दूर हो जाएगी। तुम मुझे कल बताना कि तुमने अपना मिशन कितना शुरू किया, देखना जल्द ही सब ठीक हो जायेगा। अभी मैं चलता हूँ ।"
कहकर दद्दू पार्क से चले गये।
दद्दू की बातें सोचता-सोचता निक्कू भी घर आ गया।
निक्कू ने उसी रात को निश्चय कर लिया कि कल सुबह से ही मिशन शुरू कर दूंगा।
ऐसा ही हुआ भी निक्कू समय पर उठने से लेकर रात को सोने तक सब ठीक से करने लगा और ऐसे करते-करते सात दिन हो गये।
इस दौरान वह रोज पार्क भी जाता था ,पर दद्दू नहीं मिलते थे। आज उसने दद्दू के साथ वालो को पूछ ही लिया दद्दू के बारे में !
तब किसी ने बताया कि उनकी तबियत ठीक नहीं है, बस इसीलिये वो नहीं आ पाते हैं।
निक्कू दौड़ा-दौड़ा घर पहुंचा और पापा मम्मी को साथ लेकर दद्दू के घर मिलने पहुंच गया।
वहाँ पहुँचते ही निक्कू दद्दू से लिपट गया और बोला "दद्दू आप कैसे हो ?"
निक्कू को मम्मी-पापा के साथ देख दद्दू मुस्कराये और बोले "अरे निक्कू बेटा मैं ठीक हूँ, तुम बताओ  तुम्हारा  मिशन पूरा हुआ या नही?"
निक्कू ने कहा "हाँ दद्दू चल रहा है ।"
निक्कू के पापा ने जानना चाहा कौनसा मिशन ?
तब दद्दू ने निक्कू के पापा को पूछा पहले आप यह बताओ क्या आप निक्कू को बोर्डिंग तो नहीं भेज रहे हो ना?
निक्कू के पापा "अभी तो कुछ सोचा नहीं है लेकिन आजकल तो यह थोड़ा ठीक हुआ है , पर आप क्यों पूछ रहे हैं ?"
निक्कू की मम्मी तिरछी निगाह से देखकर रह गई।
दद्दू ने सारी बात बताई । निक्कू ने मिशन शुरू किया है 'अपने में सुधार का' और 'प्रेम से रहने का' तो अब आप ही बताइए इसका मिशन कैसा चल रहा है ?"
निक्कू के मम्मी-पापा को बेटे पर गर्व भी हुआ और थोड़ी हँसी भी आ गई । निक्कू आश्चर्य से देखने लगा कि हँस क्यों रहें हैं ।
निक्कू के पापा ने निक्कू की सहायता के लिए दद्दू को धन्यवाद दिया और निक्कू से कहा-" हम दोनों  आपस में झगड़ा नहीं करेंगे, हम सभी प्रेम से रहेंगे और ...और तुम जब इतने समझदार हो ही गए हो तो अब तुम्हें बोर्डिंग भी नहीं भेजेंगे।"
यह सुनकर "हुर्रे हुर्रे मेरा मिशन पूरा हुआ!" कहकर निक्कू दद्दू की आँखों में देख मुस्कुराने लगा ।
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डॉ. अनिता जैन "विपुला"
उदयपुर

Wednesday, February 13, 2019

जादुई पत्ता

बाल कहानी
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जादुई पत्ता
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"अरे सोना कहाँ जा रही हो , रुको तो !"
सचिन स्कूल की छुट्टी के बाद सोना के पीछे-पीछे जाते हुए पूछने लगा।
पर सोना तो कहाँ रुकने वाली थी, वह तो अपनी धुन में चली जा रही थी। रोज-रोज की मास्टर जी की डाँट और ऊपर से निकट आती परीक्षा का डर-ये दोनों सोना को बहुत परेशान किये हुए थे।

सोना सचिन की छोटी बहन थी ।दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे। सोना आये दिन पाठ याद न करने के कारण डाँट खाती रहती थी। बड़ा भाई सचिन उसके विपरीत पढ़ाई में होशियार और समझदार था । वह सोना को खूब समझाता भी था कि वह पढ़ने में ध्यान लगाये ,देर तक न सोती रहे, पर वह एक न सुनती।
आलसी सोना तो कपोल कहानियों की दुनिया में खोई रहती थी जैसे कोई जादुई जिन्न उसकी पढ़ाई कर ले। आज सुबह भी उसने कुछ ऐसा ही एक सपना देखा, उसी पर भरोसा कर निकल पड़ी थी 'जादू' ढूंढने!!
सचिन को देर तक पीछा करते देख वह रुकी और चलते-चलते बोली- "भैया आज मुझे एक सपना आया था जिसमें एक 'जादुई पत्ता' दिखा था और एक आवाज़ आई यदि यह पत्ता हम अपने पास रखेंगे तो जादू से सब पाठ जल्दी-जल्दी याद हो जायेंगे और परीक्षा में पास भी जायेंगे।"
सचिन को मन ही मन हँसी भी आई और अजीब भी लगा पर फिर भी उसने पूछा  "अच्छा वह भला कौनसा पत्ता है और हमें कहां मिलेगा?"
सोना बोली "बरगद के पेड़ का पत्ता था वह, हाँ'!"
काफी घने जंगल में एक बड़ा सा पेड़ था यह वो जानते थे।
गाँव से बहुत दूर आखिर उनको वो पेड़ मिल गया ।
सोना खुशी से उछल पड़ी " हाँ यही पेड़ है , इसीका एक-एक पत्ता हम ले लेते हैं "
सचिन जानता था कि ऐसा कुछ नहीं होता है, पर अपनी बहन का मन रखने के लिए उसने भी एक पत्ता ले लिया।
दोनों घर पर किसी को कुछ न बताने के निश्चय के साथ लौट आये।
सोना ने घर आकर बहुत सहेजकर वह 'पत्ता' बस्ते में रख दिया। एक दिन बीता, दो-तीन-चार करके सात दिन बीत गए थे पर पत्ते का जादू तो काम ही नहीं कर रहा था। सोना बहुत दुःखी हुई।

       उस दिन उदास बैठी सोना को उसके भाई सचिन ने पूछा "क्या हुआ मुँह क्यों उतार रखा है?"
सोना दुःखी स्वर में बोली "उस पत्ते का जादू कुछ काम ही नहीं कर रहा है , मुझे तो पाठ याद होते ही नहीं और स्कूल में वैसे ही मास्टर जी से डाँट खानी पड़ती है,ऊपर से यह उफ्फ यह परीक्षा भी इतनी नज़दीक आ गई है,अब क्या होगा, भैया आपका 'पत्ता' काम कर रहा है क्या?"
सचिन को यह अवसर उपयुक्त लगा सोना को समझाने का उसने बड़ी चतुराई से कहा "हाँ, मेरे पत्ते का तो जादू काम कर रहा है।"
सोना "वो कैसे , वो कैसे ?"
सचिन ने कहा "पत्ते से आवाज़ आई कि हर पाठ को 4-5 बार पढ़कर उसको सुनाना है और कठिन लगे तो लिखकर उसपर पत्ता रख याद करना है।"
सोना ने भी वैसे ही करना शुरू कर दिया । रोज 4-5 बार पाठ पढ़ती याद करके चुपके से उस पत्ते को सुनाती जैसा कि उसके भाई ने कहा था।
ऐसा करने से सोना का पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा रहता था और आलस भी छू-मंतर हो गया था।
परीक्षा हुई । अच्छे अंकों से दोनों उत्तीर्ण हुए ।
सोना ने अपने भैया को धन्यवाद कहा क्योंकि अब सोना समझ चुकी थी कि जादू उस पत्ते में नहीं उसके अपने भीतर ही था जो उसके भाई ने जगाया।
सोना ने कहा "भैया सच में आप जादूगर हो।"
सचिन ने कहा "जादू तुम में , मुझ में , हम सभी में है बस उस जादू को समझने की जरूरत है। हम मेहनत और लगन से कुछ भी हासिल कर सकते हैं, समझी पगली "
सोना उस जादुई पत्ते को देख मुस्कुराने लगी।
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डॉ. अनिता जैन '"विपुला"

Sunday, February 24, 2013

सम्बन्ध

         टूटती मर्यादाओं 
         नोचते अस्तित्व 
        व्यथित हृदयों ने 
         स्त्री-पुरुष के 
         भीने संबंधों  को 
         सड़न भरी 
         कुत्सित  बदबू से 
        भर दिया 
        बस अब आशंका 
        घृणा ही शेष 
        उस सम्बन्ध अशेष में       
        ज़ार ज़ार 
        तार तार 
        सहमा -सा 
       तथाकथित 
       सम्बन्ध विशेष ....

क्यों? क्यों?क्यों?????


एक विषय “जन्मी –अजन्मी कन्याओ की दुर्दशा” पर  न केवल चिंतन करेंगे बल्कि कुछ करने का संकल्प लेंगे. अपनी प्रतिक्रिया जरूर बतावें ............


क्यों रौंद रहे हो 
ममता की कोमलता को ?
क्यों ठुकरा रहे हो 
अपनी ही बेटी को ?
क्यों दुत्कार रहे हो 
अपने ही अस्तित्व को ?
क्यों नोच रहे हो 
अपनी ही अस्मिता को ?
क्यों लजा रहे हो 
मानवता की गरिमा को ?
क्यों बेबस है वह “अजन्मी"
अत्याचार सहने को ?
क्यों हौसले हैं बुलंद 
उन बेरहम कातिलों के ?
क्यों नहीं पिघला रही 
इंसान की संवेदना को ? 
क्यों मिटा रहे हो 
सभ्यता सौम्यता को?
क्यों हो रहा है यह दमन
क्या अनमोल पाने को ?
क्यों हो रहा यह छिः छिः 
मनुष्यता के मर्म का अंत ?
"अजन्मीबच्ची की कर हत्या
कर रहें है ये दुष्ट 
बेचारे ,लाचार ,निर्दोष जीवन का अंत 
पर क्योंक्योंक्यों?
डा. अनिता जैन 'विपुला '

समझें कैसे??


भीतर कुछ
 बाहर कुछ
 दोगले
 हो चुके व्यवहारों को
 समझें कैसे ?
 जो नहीं है वही
 बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने वाले
 चोंचलें
 बन चुके जीवन को
 समझें कैसे ?
 किसी के लिए जो सही
 दूसरे के लिए वही सही नहीं 
 खोखले
 हो चुके मानदंडों को
 समझें कैसे ?
 कर रहा हर कोई
 खुश रहने की झूठी कोशिशें
 टोटके
 बन चुकी खुशी को
 समझें कैसे ?
  खो चुके आधार-मूल्य
 पोपले
 बन चुके समाज को
 समझें कैसे ?
 समझने के लिए क्या चाहिए ?
 चाहिए बस एक ठोस आधार
 करुणा का
 समता -एकरूपता  का
 निर्मल झरना जो बहे
 अंदर -बाहर निर्बाध-एकरूप
 वास्तविक खुशियों भरा
 सीधा ,सच्चा
 सरल जीवन ...
            डा. अनिता जैन 'विपुला

Kavita

आज कुछ पंक्तियाँ कुलांचें माररही है ,क्यों न आपके साथ शेयर की जाये ..
कविता क्या है 
क्या सुना कभी 
आपने 
किसे कहतें हैं 
कविता 
नहीं पता ..मुझे 
मैंने तो लिखी 
प्रिय के लिये 
इक छोटी -सी
पाती 
जिसमें भरा था 
नेह निर्मल 
सागर -सा 
सलिल 
बस पा सकूँ 
उसका अहसास 
आस- पास 
पल -पल 
रहे साकार 
सौंदर्य अपार
अति आनंद भरा 
शब्द -निशब्द 
मनभावन 
अतिपावन 
संसार 
सार ...........