Wednesday, February 13, 2019

जादुई पत्ता

बाल कहानी
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जादुई पत्ता
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"अरे सोना कहाँ जा रही हो , रुको तो !"
सचिन स्कूल की छुट्टी के बाद सोना के पीछे-पीछे जाते हुए पूछने लगा।
पर सोना तो कहाँ रुकने वाली थी, वह तो अपनी धुन में चली जा रही थी। रोज-रोज की मास्टर जी की डाँट और ऊपर से निकट आती परीक्षा का डर-ये दोनों सोना को बहुत परेशान किये हुए थे।

सोना सचिन की छोटी बहन थी ।दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे। सोना आये दिन पाठ याद न करने के कारण डाँट खाती रहती थी। बड़ा भाई सचिन उसके विपरीत पढ़ाई में होशियार और समझदार था । वह सोना को खूब समझाता भी था कि वह पढ़ने में ध्यान लगाये ,देर तक न सोती रहे, पर वह एक न सुनती।
आलसी सोना तो कपोल कहानियों की दुनिया में खोई रहती थी जैसे कोई जादुई जिन्न उसकी पढ़ाई कर ले। आज सुबह भी उसने कुछ ऐसा ही एक सपना देखा, उसी पर भरोसा कर निकल पड़ी थी 'जादू' ढूंढने!!
सचिन को देर तक पीछा करते देख वह रुकी और चलते-चलते बोली- "भैया आज मुझे एक सपना आया था जिसमें एक 'जादुई पत्ता' दिखा था और एक आवाज़ आई यदि यह पत्ता हम अपने पास रखेंगे तो जादू से सब पाठ जल्दी-जल्दी याद हो जायेंगे और परीक्षा में पास भी जायेंगे।"
सचिन को मन ही मन हँसी भी आई और अजीब भी लगा पर फिर भी उसने पूछा  "अच्छा वह भला कौनसा पत्ता है और हमें कहां मिलेगा?"
सोना बोली "बरगद के पेड़ का पत्ता था वह, हाँ'!"
काफी घने जंगल में एक बड़ा सा पेड़ था यह वो जानते थे।
गाँव से बहुत दूर आखिर उनको वो पेड़ मिल गया ।
सोना खुशी से उछल पड़ी " हाँ यही पेड़ है , इसीका एक-एक पत्ता हम ले लेते हैं "
सचिन जानता था कि ऐसा कुछ नहीं होता है, पर अपनी बहन का मन रखने के लिए उसने भी एक पत्ता ले लिया।
दोनों घर पर किसी को कुछ न बताने के निश्चय के साथ लौट आये।
सोना ने घर आकर बहुत सहेजकर वह 'पत्ता' बस्ते में रख दिया। एक दिन बीता, दो-तीन-चार करके सात दिन बीत गए थे पर पत्ते का जादू तो काम ही नहीं कर रहा था। सोना बहुत दुःखी हुई।

       उस दिन उदास बैठी सोना को उसके भाई सचिन ने पूछा "क्या हुआ मुँह क्यों उतार रखा है?"
सोना दुःखी स्वर में बोली "उस पत्ते का जादू कुछ काम ही नहीं कर रहा है , मुझे तो पाठ याद होते ही नहीं और स्कूल में वैसे ही मास्टर जी से डाँट खानी पड़ती है,ऊपर से यह उफ्फ यह परीक्षा भी इतनी नज़दीक आ गई है,अब क्या होगा, भैया आपका 'पत्ता' काम कर रहा है क्या?"
सचिन को यह अवसर उपयुक्त लगा सोना को समझाने का उसने बड़ी चतुराई से कहा "हाँ, मेरे पत्ते का तो जादू काम कर रहा है।"
सोना "वो कैसे , वो कैसे ?"
सचिन ने कहा "पत्ते से आवाज़ आई कि हर पाठ को 4-5 बार पढ़कर उसको सुनाना है और कठिन लगे तो लिखकर उसपर पत्ता रख याद करना है।"
सोना ने भी वैसे ही करना शुरू कर दिया । रोज 4-5 बार पाठ पढ़ती याद करके चुपके से उस पत्ते को सुनाती जैसा कि उसके भाई ने कहा था।
ऐसा करने से सोना का पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा रहता था और आलस भी छू-मंतर हो गया था।
परीक्षा हुई । अच्छे अंकों से दोनों उत्तीर्ण हुए ।
सोना ने अपने भैया को धन्यवाद कहा क्योंकि अब सोना समझ चुकी थी कि जादू उस पत्ते में नहीं उसके अपने भीतर ही था जो उसके भाई ने जगाया।
सोना ने कहा "भैया सच में आप जादूगर हो।"
सचिन ने कहा "जादू तुम में , मुझ में , हम सभी में है बस उस जादू को समझने की जरूरत है। हम मेहनत और लगन से कुछ भी हासिल कर सकते हैं, समझी पगली "
सोना उस जादुई पत्ते को देख मुस्कुराने लगी।
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डॉ. अनिता जैन '"विपुला"

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