Sunday, February 24, 2013

सम्बन्ध

         टूटती मर्यादाओं 
         नोचते अस्तित्व 
        व्यथित हृदयों ने 
         स्त्री-पुरुष के 
         भीने संबंधों  को 
         सड़न भरी 
         कुत्सित  बदबू से 
        भर दिया 
        बस अब आशंका 
        घृणा ही शेष 
        उस सम्बन्ध अशेष में       
        ज़ार ज़ार 
        तार तार 
        सहमा -सा 
       तथाकथित 
       सम्बन्ध विशेष ....

क्यों? क्यों?क्यों?????


एक विषय “जन्मी –अजन्मी कन्याओ की दुर्दशा” पर  न केवल चिंतन करेंगे बल्कि कुछ करने का संकल्प लेंगे. अपनी प्रतिक्रिया जरूर बतावें ............


क्यों रौंद रहे हो 
ममता की कोमलता को ?
क्यों ठुकरा रहे हो 
अपनी ही बेटी को ?
क्यों दुत्कार रहे हो 
अपने ही अस्तित्व को ?
क्यों नोच रहे हो 
अपनी ही अस्मिता को ?
क्यों लजा रहे हो 
मानवता की गरिमा को ?
क्यों बेबस है वह “अजन्मी"
अत्याचार सहने को ?
क्यों हौसले हैं बुलंद 
उन बेरहम कातिलों के ?
क्यों नहीं पिघला रही 
इंसान की संवेदना को ? 
क्यों मिटा रहे हो 
सभ्यता सौम्यता को?
क्यों हो रहा है यह दमन
क्या अनमोल पाने को ?
क्यों हो रहा यह छिः छिः 
मनुष्यता के मर्म का अंत ?
"अजन्मीबच्ची की कर हत्या
कर रहें है ये दुष्ट 
बेचारे ,लाचार ,निर्दोष जीवन का अंत 
पर क्योंक्योंक्यों?
डा. अनिता जैन 'विपुला '

समझें कैसे??


भीतर कुछ
 बाहर कुछ
 दोगले
 हो चुके व्यवहारों को
 समझें कैसे ?
 जो नहीं है वही
 बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने वाले
 चोंचलें
 बन चुके जीवन को
 समझें कैसे ?
 किसी के लिए जो सही
 दूसरे के लिए वही सही नहीं 
 खोखले
 हो चुके मानदंडों को
 समझें कैसे ?
 कर रहा हर कोई
 खुश रहने की झूठी कोशिशें
 टोटके
 बन चुकी खुशी को
 समझें कैसे ?
  खो चुके आधार-मूल्य
 पोपले
 बन चुके समाज को
 समझें कैसे ?
 समझने के लिए क्या चाहिए ?
 चाहिए बस एक ठोस आधार
 करुणा का
 समता -एकरूपता  का
 निर्मल झरना जो बहे
 अंदर -बाहर निर्बाध-एकरूप
 वास्तविक खुशियों भरा
 सीधा ,सच्चा
 सरल जीवन ...
            डा. अनिता जैन 'विपुला

Kavita

आज कुछ पंक्तियाँ कुलांचें माररही है ,क्यों न आपके साथ शेयर की जाये ..
कविता क्या है 
क्या सुना कभी 
आपने 
किसे कहतें हैं 
कविता 
नहीं पता ..मुझे 
मैंने तो लिखी 
प्रिय के लिये 
इक छोटी -सी
पाती 
जिसमें भरा था 
नेह निर्मल 
सागर -सा 
सलिल 
बस पा सकूँ 
उसका अहसास 
आस- पास 
पल -पल 
रहे साकार 
सौंदर्य अपार
अति आनंद भरा 
शब्द -निशब्द 
मनभावन 
अतिपावन 
संसार 
सार ...........