Sunday, February 24, 2013

समझें कैसे??


भीतर कुछ
 बाहर कुछ
 दोगले
 हो चुके व्यवहारों को
 समझें कैसे ?
 जो नहीं है वही
 बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने वाले
 चोंचलें
 बन चुके जीवन को
 समझें कैसे ?
 किसी के लिए जो सही
 दूसरे के लिए वही सही नहीं 
 खोखले
 हो चुके मानदंडों को
 समझें कैसे ?
 कर रहा हर कोई
 खुश रहने की झूठी कोशिशें
 टोटके
 बन चुकी खुशी को
 समझें कैसे ?
  खो चुके आधार-मूल्य
 पोपले
 बन चुके समाज को
 समझें कैसे ?
 समझने के लिए क्या चाहिए ?
 चाहिए बस एक ठोस आधार
 करुणा का
 समता -एकरूपता  का
 निर्मल झरना जो बहे
 अंदर -बाहर निर्बाध-एकरूप
 वास्तविक खुशियों भरा
 सीधा ,सच्चा
 सरल जीवन ...
            डा. अनिता जैन 'विपुला

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